झारखंड सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना गरीब और जरूरतमंद महिलाओं को आर्थिक मदद देने के लिए शुरू की गई थी। इस योजना से हर महीने ₹2500 की सहायता राशि सीधे महिलाओं के खाते में ट्रांसफर की जाती है। लेकिन अब इस योजना को लेकर कई जगहों से गड़बड़ी की खबरें सामने आ रही हैं। जमशेदपुर के पोटका प्रखंड की जुड़ी पंचायत से जो रिपोर्ट आई है, उसने सबको चौंका दिया है।
यहां मंईयां सम्मान योजना के लाभुकों की लिस्ट में ऐसे मुस्लिम महिलाओं के नाम मिले हैं, जिनका गांव में कोई वजूद ही नहीं है। इससे यह साफ होता है कि योजना में फर्जीवाड़ा हो रहा है और गरीबों का हक कोई और खा रहा है। अब सवाल यह है कि जब गांव में ये महिलाएं हैं ही नहीं, तो उनके नाम और बैंक खाते कहां से आए? और इससे भी बड़ा सवाल ये पैसे आखिर किसके खाते में जा रहे हैं?
बिना मौजूदगी के नाम, कैसे हो रहा घोटाला?
जुड़ी पंचायत की जब सरकारी स्तर पर जांच की गई, तब एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया। पंचायत में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है, फिर भी लाभुकों की सूची में 15 मुस्लिम महिलाओं के नाम दर्ज थे। इतना ही नहीं, ये सभी नाम लगातार क्रम संख्या 342 से 358 तक दर्ज हैं और सबके बैंक खाते एक ही बैंक में क्रमवार खुले हुए हैं जो कि स्पष्ट रूप से किसी बड़े नेटवर्क का इशारा करता है। पंचायत के मुखिया सुकलाल सरदार ने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि उन्हें इन नामों की कोई जानकारी नहीं थी।
अब सवाल यह उठता है कि ये नाम किसने, कैसे और किसके कहने पर सूची में जुड़वाए? सरकारी सत्यापन में यह सामने आना कि सूची में एक पुरुष का नाम भी महिला योजना के लाभार्थी के रूप में दर्ज है, यह साबित करता है कि योजना का सिस्टम कहीं ना कहीं लीक कर रहा है। प्रशासन ने फिलहाल इन नामों को लाभ से वंचित करने की बात कही है, लेकिन जब तक इस घोटाले के पीछे के लोगों की पहचान और कार्रवाई नहीं होती, तब तक इसका समाधान अधूरा है।
5.46 लाख महिलाओं का नाम हटा, इन्हें नहीं मिलेगा 5000 रूपये
गांव में नहीं रहती महिलाएं, फिर भी खाते में पहुंच रहा पैसा
पूरे पंचायत में कुल 6 गांव शामिल हैं जिनका नाम जुड़ी, हाता, पावरु, तिरिंग, नुआग्राम और चांपीडीह है। इनमें से सिर्फ हाता गांव में एक मुस्लिम परिवार रहता है, बाकी पांच गांवों में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं रहता है। ऐसे में यह सवाल और बड़ा हो जाता है कि बाकी 15 मुस्लिम महिलाओं के नाम कहां से आ गए?
स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने इन महिलाओं को कभी गांव में नहीं देखा है। अगर कोई महिला गांव में रहती भी नहीं है और उसका नाम लाभुक लिस्ट में है, तो यह स्पष्ट रूप से फर्जीवाड़ा है। यह मामला न केवल सरकारी तंत्र की खामियों को उजागर करता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि योजनाओं का लाभ किन लोगों तक पहुंचना चाहिए और किसे मिल रहा है, इसमें अब भारी अंतर आ गया है।
सरकार और प्रशासन से अब सख्त कार्रवाई की मांग
इस पूरे मामले ने मंईयां सम्मान योजना की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। भाजपा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता अब इस पर कड़ी जांच और कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि मंईयां सम्मान योजना में ‘बाहरी’ लोगों के नाम शामिल कराकर गरीबों का हक छीना जा रहा है।
सरकार को अब यह तय करना होगा कि योजना का लाभ सिर्फ उन्हीं महिलाओं को मिले जो सच में पात्र हैं। साथ ही, यह भी जरूरी है कि जिन लोगों ने फर्जी तरीके से नाम जोड़वाए हैं या इसके पीछे शामिल हैं, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो। अगर इस बार भी सरकार ने सिर्फ नाम हटाकर मामला रफा-दफा कर दिया, तो यह घोटाला आगे और भी बड़े स्तर पर सामने आ सकता है।