Ladki Bahin Yojana Update: दो विभागों की कटौती से जारी हुई अप्रैल की किस्त, सरकार पर उठे सवाल

महाराष्ट्र सरकार की लोकप्रिय योजना मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिन योजना एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह कुछ अलग है। हर महीने महिलाओं के खातों में ₹1500 ट्रांसफर करने वाली यह योजना अब खुद सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। अप्रैल महीने की किस्त को लेकर जहां एक ओर बहनों को बेसब्री से इंतज़ार था, वहीं दूसरी ओर सरकार को इस किस्त का भुगतान करने के लिए राज्य के दो बड़े विभागों – आदिवासी विकास और सामाजिक न्याय विभाग – के बजट में कटौती करनी पड़ी है।

यह स्थिति अपने आप में काफी गंभीर है क्योंकि इससे साफ पता चलता है कि लाडकी बहिन योजना की आर्थिक स्थिति कितनी नाजुक हो गई है। सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या ऐसी योजनाएं बिना ठोस बजट के सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए चलाई जा रही हैं? क्या बाकी ज़रूरी योजनाओं का पैसा काटकर एक योजना को ज़िंदा रखना वाजिब है?

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इन सब के बीच सरकार की ओर से भरोसा दिलाया जा रहा है कि योजना बंद नहीं होगी और सभी बहनों को समय पर पैसा मिलता रहेगा। लेकिन विपक्ष इन दावों पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। अब इस योजना की सच्चाई क्या है, और आगे इसका भविष्य क्या होगा, आइए जानते हैं विस्तार से। तो अगर आप लाडकी बहिन योजना की लाभार्थी महिला है तो पोस्ट को आखिर तक जरूर पढ़ें ताकि इस योजना से जुड़ी एक भी छोटी बड़ी अपडेट आपसे न छूटे।

कब और क्यों शुरू हुई लाडकी बहिन योजना?

लाडकी बहिन योजना की शुरुआत महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले हुई थी। उस समय सरकार ने इसे महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का बड़ा कदम बताते हुए शुरू किया था। लाडकी बहिन योजना के तहत 21 से 65 वर्ष तक की महिलाएं, जो परिवार की आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आती हैं, उन्हें हर महीने ₹1500 की सहायता राशि दी जाती है।

इस योजना को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की जोड़ी ने चुनावी वादों में प्रमुखता से शामिल किया था। बाद में चुनावी मंच से इसे ₹2100 तक बढ़ाने का आश्वासन भी दिया गया था। हालांकि, ये वादा अभी तक धरातल पर नहीं उतर सका है।सरकार का कहना है कि इस योजना से करीबन 2 करोड़ 41 लाख महिलाएं लाभान्वित हो रही हैं।

लेकिन इतनी बड़ी संख्या में भुगतान के लिए हर महीने हजारों करोड़ रुपये की आवश्यकता होती है, जो कि सरकार की मौजूदा वित्तीय स्थिति को देखते हुए काफी भारी पड़ रहा है। यही कारण है कि अब दूसरे विभागों के फंड को काटकर किस्त जारी करनी पड़ रही है, जिससे योजना की जमीनी सच्चाई पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

अप्रैल की किस्त में क्यों हुई देरी?

हर महीने की तरह इस बार भी लाभार्थी महिलाएं अप्रैल की किस्त का इंतज़ार कर रही थीं। पहले कहा गया था कि अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर यह राशि खातों में आ जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किस्त मिलने में देरी हुई, जिससे कई बहनों में नाराज़गी भी देखने को मिली। बाद में महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे ने सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी दी कि किस्त भुगतान की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और 2 से 3 दिनों के अंदर सभी पात्र महिलाओं के खाते में राशि ट्रांसफर कर दी जाएगी।

सरकार की मानें तो तकनीकी कारणों और फंड की व्यवस्था को लेकर प्रक्रिया में विलंब हुआ, लेकिन विपक्ष का दावा है कि बजट में पैसों की कमी की वजह से भुगतान में देरी हुई। यह भी सामने आया कि बिना आधार लिंक बैंक अकाउंट्स या अपूर्ण दस्तावेज़ों के कारण भी कुछ बहनों को राशि नहीं मिल पाई है। साफ है कि लाडकी बहिन योजना की किस्त मिलने में सिर्फ प्रशासनिक देरी नहीं है, बल्कि वित्तीय दबाव भी एक बड़ी वजह बन चुकी है।

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किन विभागों के बजट में हुई कटौती?

अप्रैल की किस्त जारी करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को आदिवासी विकास विभाग और सामाजिक न्याय विभाग की योजनाओं के फंड में सीधी कटौती करनी पड़ी। आदिवासी विभाग से करीब ₹335.70 करोड़ और सामाजिक न्याय विभाग से ₹410.30 करोड़ की राशि महिला व बाल विकास विभाग को ट्रांसफर की गई। इससे कुल ₹746 करोड़ रुपये का इंतजाम कर किस्त की राशि दी गई।

इस कदम से यह साफ हो गया कि सरकार के पास फंड की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है और उसे दूसरों की योजनाओं के फंड में कटौती करनी पड़ रही है। इसपर सामाजिक न्याय मंत्री संजय शिरसाट ने नाराज़गी भी जताई और इसे अन्य समुदायों के साथ अन्याय बताया है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि इस तरह की फंड डायवर्शन से अनुसूचित जाति, जनजाति और नवबौद्ध समुदायों की कई कल्याणकारी योजनाएं प्रभावित होंगी। अब सवाल यह है कि क्या लाडकी बहिन योजना किसी और की कीमत पर जारी रखी जा रही है?

क्या लाडकी बहिन योजना बंद होने की आशंका है?

हालांकि सरकार की ओर से यह लगातार कहा जा रहा है कि लाडकी बहिन योजना कभी बंद नहीं होगी। उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि यह योजना महाराष्ट्र की महिलाओं के लिए समर्पित है और किसी भी परिस्थिति में इसे रोका नहीं जाएगा। उन्होंने विपक्ष पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि यह योजना जनता के विकास से जुड़ी है, इसलिए इसे बंद करने का सवाल ही नहीं उठता।

हालांकि, हकीकत यह भी है कि जब किसी योजना को जारी रखने के लिए दूसरों के बजट में कटौती करनी पड़े, तो उसकी स्थिरता पर सवाल उठना लाजमी है। आने वाले समय में सरकार को इस योजना के लिए एक स्थायी वित्तीय मॉडल बनाना होगा ताकि न तो भुगतान में देरी हो और न ही किसी अन्य योजना को नुकसान पहुंचे।

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